ख्वाब तुम्हारे!
मन बंजारा,
सब कुछ हारा,
सेंध लगाई जब से तुमने,
प्रीत भरी इन नजरों से !
छैलछबीला,
था रंगीला,
सब रंग खोये मैंने अपने,
चढ़ी हो जब से नजरों में !
धूप कँटीली,
हुई नशीली,
इंतजार के फूल बिछाए,
जब राह में तेरी नजरों ने !
रात थी सोई,
सपनों में खोई,
देख सुनहरे ख्वाब तुम्हारे,
जाग उठी इन नजरों में !
सुबह सवेरे,
पंछी चितेरे,
चहक उठे मेरे अँगना में आ कर,
हो के पुलक तेरी नजरों से !
[ये कविता दिल्ली प्रेस की पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।]
3 Comments:
छैलछबीला,
था रंगीला,
सब रंग खोये मैंने अपने,
चढ़ी हो जब से नजरों में !
धूप कँटीली,
हुई नशीली,
इंतजार के फूल बिछाए,
जब राह में तेरी नजरों ने !
बहुत सुन्दर।
बहुत सुन्दर!!
behad khubsurat
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