"ज़रा देखो तो"
खिड़की की ओट से,
परदे के छोर को,
धीमे से सरका कर,
जरा देखो तो,
पिया खड़े हैं !
मन में प्यास जगाये,
इक आस लगाये,
तेरे दीदार को,
जरा देखो तो,
पिया खड़े हैं !
चाँदनी धूप सी चुभे है,
फूल नश्तर बने हैं,
सह सारे जुल्म,
जरा देखो तो,
पिया खड़े हैं !
मान रूप का करो,
जहाँ चाहे छुपो,
झाँक दिल में मगर,
जरा देखो तो,
पिया खड़े हैं !
[ये रचना दिल्ली प्रेस की पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।]
3 Comments:
वाह डॉ.साहब! लयबद्ध रचना!
doctor sahab chhaa gaye
बहुत सुंदर ...
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