"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल !
रोयाँ-रोयाँ रोया था तेरी खातिर,
चैन दिल ने खोया था तेरी खातिर ।
बात तारों से कर के गुजारूँ मैं रात,
मैं न कब से सोया था तेरी खातिर ।
फकत काँटे ही मुझको थमाये थे क्यों,
फूल मैंने बोया था तेरी खातिर ।
तुम तो गैरों को करते रहे थे हवा,
होश मैंने खोया था तेरी खातिर ।
कोई सुनता नहीं क्यों मेरी दास्ताँ,
ये जहाँ भी गोया था तेरी खातिर ।
6 Comments:
Waah !! Sundar Gazal !!
ग़ज़ल बहुत शानदार है ...मोहब्बत में ऐसा भी होता है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
तुम तो गैरों को करते रहे थे हवा,
होश मैंने खोया था तेरी खातिर ।
कोई सुनता नहीं क्यों मेरी दास्ताँ,
ये जहाँ भी गोया था तेरी खातिर
behad sunder
शब्दों के हो मनभावों के हो
गोया तुम हो शातिर शातिर
महकती हुई गजल । सुन्दर लगी
very good bahut acha laga gajal ko padh kar Anil g kya Khoob Likhte ho
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