"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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"दर्द का सिलसिला"
दर्द का सिलसिला है चल पड़ा
कौन जाने अब मिले कहाँ दवा
जान जिस को गिरवी हमने दे दी थी
बीच चौराहे पे सौदा कर गया
वो जुबाँ से कुछ कभी कहते नहीं
सोचते हैं हमको सब कुछ है पता
शौक से तू चुभा नश्तर मेरे
जख्म भी नासूर अब तो बन चुका
दरमियाँ बातों के सब कुछ कह दिया
पूछते हो फिर तुम्हारी क्या खता
5 Comments:
Waah ! Waah ! Waah !
Bahut sundar bhavpoorn abhivyakti..Sundar gazal...
bahut achchhi lagi
वाह...वा...बहुत खूब अनिल जी अच्छी ग़ज़ल कही है...हर शेर दिल से निकला हुआ है...लिखते रहिये...
नीरज
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
अच्छी लगी बहुत ये गज़ल आपकी ।
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