" कोई आइल नहीं हैं हम !"
तेरी तरह संगदिल नहीं हैं हम,
चाहने वालों के कातिल नहीं हैं हम ।
सूरते-हाल पर कभी तो गौर करो,
इतने भी नाकाबिल नहीं हैं हम ।
दिल में कुछ औ’ चेहरे पर कुछ और रहे,
तुम जैसे तो आकिल(*) नहीं हैं हम ।
यूं शक से हरदम न देखा करो,
तुम्हारे लिये हलाहल(&) नहीं हैं हम ।
यूं न आँखें दिखा हाले-इजहार से,
एक इंसा हैं, कोई आइल(#) नहीं हैं हम ।
(*) बुद्धिमान (&) विष (#) सन्यासी
3 Comments:
prem ki anubhooti bhi itana hi swabhimani hota hai ........ki kabhi kabhi kah sake ham ye nahi our hum wo nahi hai.........sundar
बढ़िया है अनिल जी. शब्दार्थ दे कर बहुत अच्छा किया.
इन प्रेम् अनुभूतियों के लिये शब्द भी कम पड जाते हैं मगर आपने बहुत सुन्दरता से निभाया है इनको शुभकामनायें
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