मौन नज़र!
मौन नज़र संदेशवाहिनी!
बह निकला भावों का बाँध,
खोले जो नयनों के द्वार,
स्मित रेखा थी क्षीण मगर,
बिंधी ह्रदय में सौ-सौ बार,
भाव सभी उन्मुक्त कामिनी!
गुमसुम सी बैठी चुपचाप,
खुद से छुपा रही क्यों बात?
घोर अंधेरे में क्या चाँद,
कभी छुपा सकती है रात?
आज बनो न रूप-मानिनी!
सर-सर हो मेघों से बात,
कुंतल उड़ छा गये आकाश,
बिजली बन कड़के है आज,
तिरछी भवें बन बाहुपाश,
हर उर की हो तुम संग-गामिनी!
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