जब से !
जब से तुमने
हमारी बात
समझनी बंद कर दी
हमने भी
अपनी बात
कहनी बंद कर दी!
तुम आते भी हो
बतियाते भी हो
और
बात-बात में
मुस्कराते भी हो
फिर कहते हो
तुम्हे हमसे
कोई सरोकार नहीं
भई
तुमने तो हद कर दी!
इसी उहा-पोह में
मन
परेशान सा हो जाता है
कुछ न चाहते हुए भी
अपनी बात
शब्दों में कह जाता है
ये परेशानी और बढ़ गई
जब तुमने
मेरी कविता पढ़ कर
आँखें बंद कर लीं!
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home