फासले!
सहारों से जब जब है ठोकर मिली,
ये रस्ते हमारे सुलझते गये ।
किनारों ने जब भी है धोखा दिया,
हम तूफाँ का दामन पकड़ते गये ।
बसाते रहे जो भी हम बस्तियाँ,
उनसे मायूस हो कर निकलते गये ।
अपनी कोशिश तो थी साथ चलते रहें,
उनकी रफ्तार से पर पिछड़ते गये ।
दो कही, दो सुनी, बात तो हो गई,
फासले दिन-ब-दिन लेकिन बढ़ते गये ।
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