शिकवे-गिले!
कभी शिकवा, कभी गिला करते
प्यार का ये सिला दिया करते
उम्र उम्मीद में गुज़ारी है
काश हमसे भी वो मिला करते
दोस्ती की है तो निभायेंगें
हम पे थोड़ा यकीं किया करते
एकतरफा हमारा प्यार सही
नजर इधर कभी किया करते
सोच मेरी, तुम्हारी सोच में है
मन की आवाज़ सुन लिया करते
2 Comments:
डा. अनिल,
आपकी गज़ल बहुत अच्छी है। विशेषकर ये पंक्तियाँ:
उम्र उम्मीद में गुज़ारी है
काश हमसे भी वो मिला करते
सोच मेरी, तुम्हारी सोच में है
मन की आवाज़ सुन लिया करते
बधाई आपको
*** राजीव रंजन प्रसाद
अनिल जी,
सुन्दर गजल है प्यार में उम्मीद का आलम लिये.
लिखते रहिये
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