अब बुलाएँ ना !
कोई तो रात से कह दे, मुझे सताये ना,
तुम्हारे ख्वाब हैं आते, मुझे जगाये ना ।
जमाना गुज़रा है, अश्कों से दोस्ती है हुई,
कुछ ऐसी बात करो, जो मुझे रुलाए ना ।
शमा से ज्यादा दिया, साथ इन अंधेरों ने,
कहो ज़माने से, कोई शमा जलाये ना ।
जो ज़ाम तुमने पिलाये, थे मेरे खूँ से भरे,
कोई शराब नज़र से, कभी पिलाये ना ।
कभी था वक्त कि बेबात वो बुलाते थे,
अब किसी बात पर हमें कभी बुलायें ना ।
2 Comments:
कोई तो रात से कह दे, मुझे सताये ना,
तुम्हारे ख्वाब हैं आते, मुझे जगाये ना ।
वाह डॉक्टर साहब बहुत अच्छी पक्तिंयाँ है...
सुनीता(शानू)
अनिल जी
बहुत ही सधी हुई गज़ल है, कई शेर लाजवाब हैं, जैसे:
कोई तो रात से कह दे, मुझे सताये ना,
तुम्हारे ख्वाब हैं आते, मुझे जगाये ना ।
शमा से ज्यादा दिया, साथ इन अंधेरों ने,
कहो ज़माने से, कोई शमा जलाये ना ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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