यूं ही जी लें गें!
तुम बात नहीं करोगे तो ज़हर तो नहीं पी लें गें हम,
ग़र यूँ ही जीना है हमको तो यूँ भी जी लें गें हम!
कसमों की तुम बात करो न, कसमें कौन निभाता है,
दुनिया की रस्मों में पड़ कर झूठी कसमें खाता है,
कसमें-वादे झूठे निकले तो भी तो जी लें गें हम!
पास रहो या दूर रहो तुम, फरक यहाँ क्या पड़ता है,
तुमसे मिलना हो जब हमको, दो शब्द जिया कह लेता है,
कविता में तुम बसती हो, ये सोच के ही जी लें गें हम!
2 Comments:
बहुत अच्छे भाव है नितांत सरल और उत्तम…।
एक सकारात्मक सोच को दर्शाती रचना!!
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