तुम्हारा प्यार!
कभी भी
चले आती हो
ख्यालों में
बिना आहट किये
और
दे जाता है दस्तक
इस दिल पर
तुम्हारा प्यार!
कहीं से भी तो
निकल नहीं पाता हूँ
बैठी मिल जाती हो
हर मोड़ पर
हर ख्याल में
और
बंद हो जाता है
ज़िंदगी का
हर द्वार!
खिलाना तो चाहता हूँ
तुम्हारे गुलशन में
फूल रंग-बिरंगे
ताकि
खुशबू आये
मेरे जीवन में भी
पर
कांटों से डर कर
चुप रह जाता हूँ
हर बार!
2 Comments:
बढ़िया है, बधाई.
पर
कांटों से डर कर
चुप रह जाता हूँ
हर बार!
डा. साहब, कविता नें आनंदित किया। बधाई।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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