"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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किसको चाहूँ!
जब
किसी की
चाहत न मिली
न ही
किसी ने
मेरी चाहत को
स्वीकार किया
तो
मैंने
स्वयँ को ही
प्यार करना शुरू कर दिया
इससे भी
उन्हे तकलीफ हुई
उन्होने हमें
खुदगर्ज कहना शुरू कर दिया
भई
हद हो गई
न तो तुम हमें चाहो
न हम तुम्हे चाहें
और
न ही
हम स्वयँ को चाहें
तो कहो
हम किसको चाहें!
2 Comments:
न तो तुम हमें चाहो
न हम तुम्हे चाहें
और
न ही
हम स्वयँ को चाहें
तो कहो
हम किसको चाहें!
--वाह, क्या बात कही!! :)
तो
मैंने
स्वयँ को ही
प्यार करना शुरू कर दिया
डा. साहब बहुत सुन्दर रचना।
*** राजीव रंजन प्रसाद
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