तेरी स्मर्तियाँ!
ये कैसे स्वपन दिये मुझको!
तेरी स्म्रतियों का लोक मिला!!
धुंध से फैले हैं गीत मधुर,
सूने उर के इस प्रांगण में,
चपला-चंचल से मीत मेरे,
अठखेली करे मन-आँगन में,
खुशियाँ पाने के लालच में,
तुझको खोने का शोक मिला!
शोभित होते हैं तारों से,
सीपी मुख जड़े धवल मोती,
चंदा भी चुराता तेरी छवि,
तू अल्हड़ सी जब है सोती,
बिन बाती दीया जलता है,
ऐसा तेरा आलोक मिला!
http://anilchadah.blogspot.com
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