विडम्बना!
बंद आँखों से लगता है अपना जहाँ,
आँख खोलो तो धोखा ही धोखा यहाँ!
कब तलक अपना दामन बचाते रहें,
खुद से खुद की नज़र ही चुराते रहें,
लोग रोयें तो उनको हँसाते रहें,
हँसना चाहा तो खुद को है रोना यहाँ!
फूल पत्थर की मानिंद बरसते रहे,
यहाँ खारों को हम तो तरसते रहे,
हर मोड़ पे गिर कर संभलते रहे,
नहीं पाना, है खोना ही खोना यहाँ!
1 Comments:
अच्छी रचना. बधाई.
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