गज़ल
सहारों से जब-जब भी ठोकर मिली,
ये रस्ते हमारे सुलझते गये!
किनारों ने जब भी है धोखा किया,
हम तूफाँ का दामन पकड़ते गये!
बसाते रहे जो भी हम बस्तियाँ,
उनसे मायूस होकर निकलते गये!
अपनी कोशिश तो थी साथ चलते रहें,
उनकी रफ्तार से पर पिछड़ते गये!
दो कही, दो सुनी, बात तो हो गई,
फासले दिन-ब-दिन पर बढ़ते गये!
1 Comments:
बहुत भावपूर्ण गजल है।बधाई\
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