एक बार फिर!
मुझे आज भी याद है
वो सुमधुर गीत
मेरे लिए तुम जो
गाया करती थीं!
और सिंदूरी शाम
ढलते-ढलते
और भी सिंदूरी
हो जाया करती थी!
मंत्रमुग्ध सी
फूलों की डालियाँ भी
तुम्हारा गीत सुनने को
थोड़ा झुक जाया करती थीं!
चिड़ियों की चहचहाट
और नदिया की कलकल
तुम्हारे गीत का
संगीत जब बन जाया करती थी!
थम जाता था वक्त
यकायक चलते-चलते
सूनी डगर भी
तुम्हारे संग गाया करती थी!
स्वपन सा प्रतीत होता है
आज वो सब
क्या तुम वही हो
जो मेरे लिये गाया करती थीं?
इतने बरस बीत गये
जीवन की धूप-छाँव में
धुंधला से गये सब क्षण
जो तुम मधुर बनाया करती थीं!
आओ एक बार फिर
युवा करलो अपने प्यार को
एक बार फिर गाओ वो गीत
मेरे लिये तुम जो गाया करती थीं!
2 Comments:
आओ एक बार फिर
युवा करलो अपने प्यार को
एक बार फिर गाओ वो गीत
मेरे लिये तुम जो गाया करती थीं!
बहुत ही सुंदर कविता ..जीवन की सच्चाई को बताती हुई ...काश वक़्त फिर से पलट सकता :)शुक्रिया और बधाई
बहुत सुन्दर रचना ।
घुघूती बासूती
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