ग़म का साथी!
हवाओं में घुल चुकी तुम्हारी यादों को
दोहरा जाता है ये मौसम -
जानती हो क्यों?
मेरी तरह इसे भी
तुम्हारी अदाओं से
प्यार सा हो गया था
तुम्हारे अहसास की
इसे भी
कुछ आदत सी पड़ चुकी थी
मेरी तरह
यह मौसम भी तुम बिन
अकेला सा महसूस करता है
और
मुझे अपना साथी बनाने को
दिल की दो-चार सुनाने को
हवाओं में घुल चुकी
तुम्हारी यादों को
दोहरा जाता है ये मौसम!
2 Comments:
खूबसूरत यादें सहजे हुये सुन्दर कविता...अच्छा लगा...धन्यवाद
शानू
बहुत अच्छा लगा इस रचना को पढ़कर.
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