बहार आई नेह की!
फुहार पड़ी मेह की,
ब्यार करे छेड़ सी,
खिल उठा चमन-चमन,
बहार आई नेह की!
घटा है काली छा रही,
बिजलियाँ गिरा रही,
सोंधी माटी की सुगंध,
सब को है लुभा रही,
अधीर क्यों न हो ये मन,
बहार आई नेह की!
मंद-मंद सी पवन,
लगाए मीठी सी अग्न,
सिहराए मेरा रोम-रोम,
भीगा-भीगा सा बदन,
अब तो चार हों नयन,
बहार आई नेह की!
सात रंग प्यार के,
पी के मनुहार के,
मंत्रमुग्ध सा ये मन,
गीत गाये प्यार के,
होगा जाने कब मिलन,
बहार आई नेह की!
2 Comments:
बहुत सुन्दर कविता !
घुघूती बासूती
अति सुन्दर!!
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