कैसे दिल को चुराते हो!
तरेर कर यूँ आँखें, क्यों इतना इतराते हो,
दिल दे रहे हो हमको, क्या ये जतलाते हो ।
खुद चुपके-चुपके, मुझसे मेरा चैन चुरा ले गये,
जब हमने कुछ मांगा तो सबको बतलाते हो ।
हूँ नासमझ, ये माना, न जानूँ कोई दाँव,
कुछ हमको भी समझाओ, कैसे दिल को चुराते हो।
दस्तूर यही पाया है कि ना भी हाँ बन जाये,
बस नाहक तड़पाने को, तुम बात बनाते हो ।
नहीं माँगता मैं जाओ तुमसे कोई भी चीज़,
पर देखना है कब तक तुम दिल को बचाते हो ।
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