"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल!
मैं भूला नहीं हूँ तुम्हारी दगा,मुझसे फिर भी न होगी तुमसे ज़फा ।तुम बहारों को अपना बनाते रहे,हम ख़िजां से हमेशा रहे बावफा ।बात करने से हमको नहीं है मना,पहले जैसी दिल में जगह है कहाँ ।मेरे पहलू में दिल है तुम्हारी तरह,सोच करके कभी तुमने देखा कहाँ ।आदतन तुमसे कर बैठे शिकवा-गिला,तुम पर उसका असर लेकिन होगा कहाँ ।
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