"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल!
इतनी बड़ी सज़ा दिल लगाने की,छीन लिया चैन ज़िन्दगी भर का ।ना यूँ दूर रखो अपने से मुझको,टूट न जाये बाँध मेरे सब्र का ।जीते जी मार दिया चाहत ने तेरी,ना करो इन्तज़ाम अब मेरी कब्र का ।सूनी निगाहें ले के कबसे खड़ें हैं,कभी तो करो रुख तुम इधर का ।दिल का इलाज़ करवाने चले थे,रोग ले बैठ हैं सारी उम्र का ।
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