किधर भागे!
प्रीत के धागे
इस तरह से बाँधें
भागे तो कोई
किधर भागे!
आएँ सजनवा
सपनों में ही
नींद से फिर कोई
क्यों जागे!
दिल ही न समझे
दिल की बातें
उनकी बात
कैसे जानें!
हर राह तुम्ही पर
ख्तम है होती
और कहीं दिल
क्यों लागे!
कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,
कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !
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"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.
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3 Comments:
सुन्दर ! हर मन में यह प्रश्न उठता है ।
घुघूती बासूती
अच्छा लगा पढ़कर ...बधाई
प्रिय डाक्टर,
"दिल ही न समझे
दिल की बातें
उनकी बात
कैसे जानें!"
मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक तल पर अधिकारिक बात रखी है आप ने काव्य रूप में -- शास्त्री जे सी फिलिप
मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!
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