गज़ल
कोई तन्हा-तन्हा रहता है, कोई हरदम हँसता रहता है,
सब अपनी-अपनी किस्मत है, कि कैसा रस्ता मिलता है ।
वादों पे जियें तो कैसे जियें, झूठों से भरी इस दुनिया में,
कोई करता यूँ ही बात कभी, कोई अपना समझ के मरता है ।
सब जान के भी अनजान बनें, सब ऐसी बातें करते हैं,
जो दिल में हो, वही बात करे, वो शख्स कहाँ पर मिलता है ।
जो खुद ही रस्ते भूला हो, पहुँचे कैसे मँजिल पर वो,
शिकवा कैसा औ' कैसा गिला, वो यूँ ही भटकता रहता है ।
2 Comments:
"कोई तन्हा-तन्हा रहता है, कोई हरदम हँसता रहता है,
सब अपनी-अपनी किस्मत है, कि कैसा रस्ता मिलता है।"
sach kaha sab apani apani kismat hai
ji bahut hI sundar .
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