गीत
सब अपने-अपने साथी हैं, यहाँ कौन किसी पर मरता है,
होली जो जली अरमानों की, अपना ही यहाँ पर हँसता है ।
क्यों ठुकराया था ज़हाँ मैंने, तुझसे ठुकराये जाने को,
क्यों सबके दुश्मन हो बैठे, दुश्मन को अपना बनाने को,
अब देख ज़फा तेरी ही सनम, मुझ पर ये ज़माना हँसता है ।
साया ही हमारा हो न सका, क्या दोष है इन अँधियारों का,
जीना मुशिकल, मरना मुशिकल, कोई साथ न दे बचारों का,
चलते हैं अकेले हारे हुए, नहीं साथ में कोई चलता है ।
1 Comments:
saya agar sath de ne laga,
to log julpho ke saye me rat bittane lage,
phir kaon saphira hoga jo ashiya talase ga
chhada ji
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home