भली सी बात!
घने पत्तों की छाँव से झाँकती,
सूरज की बिखरी-बिखरी रौशनी भी,
सुईयों की मानिंद काटने को दौड़ती हैं,
तेरी याद जब-जब दिल को झिंझोड़ती है ।
हरे-भरे पेड़-पौधे भी सूखे से लगते हैं,
हँसते-गाते लोग भी रूखे से लगते हैं,
जब तलक तेरा चेहरा दिखाई नहीं देता है,
भली सी बात भी दिल को कचोटती है ।
आँखें शीतल चाँदनी से भी जलने लगती हैं,
मधुर ब्यार भी आँधी सी लगती है,
सोती दुनिया मरूस्थल सी लगती है,
दिल की गलियों में जब तेरी याद दौड़ती है ।
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