गज़ल!
तुम तो तुम ही रहे, हम ही न हम न रहे,
तुम चाहे न मिले, तुम्हारे ग़म तो मिले ।
सोचते हैं कहें क्या तुमको हम सनम,
तुम बावफा भी रहे और बेवफा भी बने ।
तड़प मेरे दिल में उठाई बोलो क्यों,
दिल दे कर मुकरते तो कम ही सनम मिले ।
वादा करके भुलाना हम को तो आता न था,
अब आ गया है ये भी, जब से हो तुम मिले ।
तुम तो थे बहाना, अपनी तो तकदीर है,
सब छोड़ गये भंवर में, जितने सनम मिले ।
1 Comments:
अनिल जी ,आप अच्छा लिखते हैं।आप की गजल पसंद आई।
तुम तो थे बहाना, अपनी तो तकदीर है,
सब छोड़ गये भंवर में, जितने सनम मिले ।
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