गज़ल!
हर गली के मोड़ पर इक बेवफा मिला,
हैराँ हूँ ये सोच कर, क्यों फिर भी नहीं रूका ।
सुनते थे आईना कभी कहता नहीं है झूठ,
मुझको तो अपना ही अक्स इसमें नहीं दिखा ।
इन बेवफाओं को क्या कहूँ, या खुदा बता,
इतने बड़े ज़हाँ में इक तू जो है मिला ।
घबरा के आस छोड़ दी, ज़ाहिल ये क्या किया,
काँटों से डर के संग क्यों फूलों का तज़ दिया ।
किसका करूँ मैं शुक्रिया, किससे करूं गिला,
क्या पा लिया, क्या खो दिया, कुछ भी नहीं पता ।
1 Comments:
बहुत बढिया गजल है।बधाई।
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