तेरा शुक्रिया!
सुप्त थी भावना,
जगा दिया -
जादू किया !
ओढ़ के चादर मस्त अंधेरों की,
मग्न था, न थी खबर सवेरों की,
आस का इक दिया जला दिया -
खूब किया,
जादू किया !
बिना पतवार और मांझी के मैं,
उतरता-डूबता था थपेड़ों में मैं,
किनारे नैया को लगा दिया -
दे के जिया,
जादू किया !
मंजिलें थीं मगर हम भटकते थे,
सीधे से रास्ते भी न मिलते थे,
रास्ता इक नया दिखा दिया -
तेरा शुक्रिया,
जादू किया !
1 Comments:
सर शुक्रिया आपका बहुत ही अच्छी कविता लगी।
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