"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल!
बात किससे करें, हर शख्स है गमगीं यहाँ,ओढ़े फिरते हँसी, चेहरों पर नकली यहाँ ।दिल गुनहगार है, खुशियों का तकाज़ा करके,किसको मालूम था, खुशियाँ भी हैं बिकती यहाँ ।कैसे कह दें कहो, मयखाने को ग़म का साथी,ग़मों का ये ज़ोर है, मय भी नहीं चढ़ती यहाँ ।हम हैं नाचीज़, कब हों फनाँ क्या मालूम,याद रह जायें गें, गज़लें नहीं मरती यहाँ ।
2 Comments:
अनिल जी,
सभी शेर सुन्दर बन पडे हैं.. खासकर
दिल गुनहगार है, खुशियों का तकाज़ा करके,
किसको मालूम था, खुशियाँ भी हैं बिकती यहाँ ।
हम हैं नाचीज़, कब हों फनाँ क्या मालूम,
याद रह जायें गें, गज़लें नहीं मरती यहाँ ।
बधाई
हम हैं नाचीज़, कब हों फनाँ क्या मालूम,
याद रह जायेंगें, गज़लें नहीं मरती यहाँ ।
--बहुत खूब!! वाह!! लिखते रहें.
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