“यूँ ही साथ चलते रहें !”
पसीना क्यों छलक आता है
जब-जब भी दिल मेरा
प्यार जताता है
निगाहों की बातें
निगाहें समझ जाती हैं
दिलो-दिमाग बीच में
फिर क्यों आ जाता है
कहीं कोई लिखत-पढ़त नहीं
कोई जबानी जमा-खर्च नहीं
किसी अनजाने पर
भरोसा क्यों हो जाता है
आओ, हम-तुम चुपके-चुपके
इशारों-इशारों में एक दूसरे को
इक ऐसे बंधन में बाँध ले
जिसे न दिल समझ पाये
न दिमाग ही जान पाये
बस यूँ ही हम-तुम
जीवन भर साथ चलते जायें !
साथ ही चलते जायें !!
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home