"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गहराई में समाऊँ कैसे !
तेरी यादों से जुदा होऊं कैसे,
गुजरे हुए लम्हे भुलाऊँ कैसे !
दिल से उठते धुंए ने रोकी सांसें,
दबी हुई चिंगारी बुझाऊँ कैसे !
रोम रोम में बस चुका दुलार तेरा ,
दाग इसके कहो मिटाऊँ कैसे !
खुद की निगाहों में गुनहगार हुआ,
तेरे सामने नजर उठाऊं कैसे !
जो आ सकूं तो कैसे न आऊँ,
तुझे जानबूझ कर रुलाऊँ कैसे !
शमा ने चाहा कि परवाना जले,
मरने के डर से इसे बुझाऊँ कैसे !
शोख नजरों ने की है गुस्ताखी,
इनकी गहराई में समाऊँ कैसे !
(ये रचना दिल्ली प्रेस की पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।)
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