“जब से आँख मिलाना सीखा!”
तब से ही शर्माना सीखा,
उमंग उठे है आँधी जैसी,
सब कुछ लगे है मीठा-मीठा !
सोना चाहूँ नींद ना आये,
खुली अँखियों में सपने आयें,
कौन सताये चुपके-चुपके,
खोल न पाऊँ भेद खुशी का !
जोबन की मस्ती में अब तो,
जीत भी मेरी हार बनी है,
हार के सब अपनी मर्जी से,
मिला खजाना है मस्ती का !
डर जाऊँ अपनी आहट से,
रूप है क्या यही चाहत का,
ये प्रीत है, या कोई रोग लगा है,
छोड़ा नहीं मुझे कहीं का !
जीवन भर का बोझ बना है,
छोटा सा जो दिल सीने में,
याद तुम्हारी भर-भर आये,
फिर भी है रीता का रीता !
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