तुम आये, दीप जले
तुम आये, दीप जले !
वन-उपवन फूल खिले !!
नीरव मन, जड़ चेतन
बीते नहीं, कोई भी क्षण
तेरी आहट को सुन-सुन
सूने ह्रदय के तार हिले
तुम आये, दीप जले !
विहग हुए हैं अनमन
करें नहीं कोई भी स्वन
सुन तेरी पायल की धुन
सुरीली गुंजन निकले
तुम आये, दीप जले !
चक्षु जब हों बंद मेरे
लेते हैं बस स्वपन तेरे
ख्यालों ही में ही मेरे प्रिये
दो नयनों के तीर चलें
तुम आये, दीप जले !
क्रूर दिवाकर देह जलाये
भाव हैं मेरा मन बहकायें
मौसम कोई न मन को भाये
तुम आओ, मौसम बदले
तुम आये, दीप जले !
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