सपना !
तुम को
पाया भी न था कि
तन्हा हो गया
जिंदगी का
हरेक खुशनुमा लम्हा
जाने कहाँ खो गया
तेरे लबों की गर्मी से
अभी तक
झुलसता है तन मेरा
आ
लहरा दे
जुल्फों के घने बादल
और
सरोबार कर दे
मेरी भावनाओं को
अन्तस तक -
अपने भीगे
पुलकित प्यार से -
बीता हर पल
यूँ लगे कि
अपना हो गया
तेरी मदहोश साँसों ने
घोल रखा है
अजीब सा नशा
मेरे आस-पास की हवाओं में
जागते हुए भी
देखता हूँ तेरे ही स्वप्न
नींद भी तो
आती नहीं अब
डरता हूँ
ये स्वप्न भी
टूट न जायें
अब तो
हर एहसास भी
तेरा ही
सपना हो गया !
http://anilchadah.blogspot.com
Tweet







7 Comments:
बहुत खूब चड्डा जी ....प्यार को व्यक्त करने का तरीका पसंद आया
बहुत दिन बाद दिखे. बेहतरीन रचना.
समीरजी एवँ कान्तजी,
रचना पसन्द आने का बहुत-बहुत शुक्रिया !
Behad sundar rachna....hai anil ji.
antas shabd ka upyog bahut khoobsurat hai.
पहली बार आया हूं आपके ब्लोग पर.
सुन्दर रचना.
हिमांशु जी,
रचना पसन्द आने का एवं प्रोत्साहन देने का बहुत-बहुत शुक्रिया । मेरे ब्लाग की अन्य रचनाओं पर भी प्रतिक्रिया व्यक्त करें ।
राज जी,
रचना पसन्द आने का एवं प्रोत्साहन देने का बहुत-बहुत शुक्रिया । मेरे ब्लाग की अन्य रचनाओं पर भी प्रतिक्रिया व्यक्त करें ।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home