सब कहती तेरी अंगड़ाई!
बंद करती हो जब ये कमलनयन,
ऐसा लगता है ज्यों प्रियतम से,
कुछ कहते हुए हो सकुचाई !
रंग चेहरे पे आता-जाता है,
जो चाहो, कह नहीं पाती हो,
तुम दूर बैठी हो घबराई!
माना रोके तुम्हे तुम्हारी हया,
तुम लब अपने चाहे खोलो न,
सब कह जाती तेरी अंगड़ाई!
यूँ घूँघट न बनाओ पलकों को,
खुद कहती सारी कहानी तेरी,
भरी नींद से, आँखें अलसाईं!
तुम न जानो तो मैं बताता हूँ,
प्यार तब-तब हिलोरे लेता है,
जब-जब आँखें तेरी शर्माईँ!
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