गज़ल!
आदत सी पड़ गई है दोस्तों की दगा की,
बेवफाओं से करते गुरेज़ नहीं है पर ।
अपना बना के लूटा मेरा आशियाँ सभी ने,
नये आशियें से हमको परहेज़ नहीं है पर ।
वो दोस्त हैं हमारे, इतना तो यकीं है,
प्यार का वो लेते मर्ज़ नहीं हैं पर ।
मतलब भरी दुनिया में लेते तो सभी हैं,
उतारना कोई चाहता कर्ज़ नहीं है पर ।
दिल अब नहीं है करता दुनिया में जीने को,
तुम्हे देख लें तो जीने में हर्ज़ नहीं है पर ।
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