बहाना !
तुम न आने के बहाने ढूँढते हो,
हम बुलाने के,
कभी तो कोई बहाना काम आयेगा,
और तुमसे मेल हो पायेगा !
सुबह से शाम तक,
मन यही ताने-बाने बुनता है,
तुम्हारे कदमों की,
आहट सुनने को तरसता है,
कि कोई तो बहाना,
तुम्हे मुझ तक ले आयेगा !
इसी उधेड़-बुन में,
रात की नींद भी हवा हो जाती है,
सपनों में तुमसे मिलने की,
उम्मीद भी ज़ुदा हो जाती है,
और इसी आस में आँख लग जाती है,
कि सुबह का सूरज़,
कोई तो बहाना सुझा जायेगा !
1 Comments:
ओहSSSSSSSSS……………कितने सुंदर भाव हैं बहुत सरल और प्रीत में छंदबद्ध कविता…।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home